ये चिठ्ठा मेरी एक कोशिश है, हमारे महान प्राचीन भारत के बारे में लोगों को बताने की। मैं काफी समय से प्राचीन भारत के बारे में जानकारी एकत्रित कर रहा हूं। हमारा ज्ञान विज्ञान, इतिहास, उद्योग, वर्ण व्यवस्था, समाज, प्रगति इत्यादि के बारे में मैने पढा और ये जानकर मैं आश्चर्यचकित रह गया कि हम भारतीय हर काम में सबसे आगे थे। हमारे पूर्वजों ने जितनी तरक्की उस समय में कर ली थी उतनी तो हम आजतक नहीं कर पाये।
आज हमारे देश की युवा पीढी हमारे भारत के स्वर्णिम युग से अंजान है, इसका सबसे बडा कारण है "मैकाले" द्वारा प्रदत्त शिक्षा पद्धति। किसी भी देश को सदा के लिये गुलाम बनाना हो तो उनके मन में उनकी अपनी संस्कृति के लिये हीन भावना भर दो और अपनी (जो देश राज करना चाहता है उसकी) संस्कृति को इस तरह से प्रदर्शित करो जिससे यह सिध्द हो जाये कि सिर्फ और सिर्फ राज करने वाले देश में ही सारी प्रगति हुई है और उन्होने ही गुलाम देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है। गुलाम देश की अपनी कोई संस्कृति तो थी ही नहीं और जिसे वो संस्कृति मान रहे है वो तो सिर्फ जंगली आदिवासियो (जनजातियों) के रीति रिवाज मात्र है।
यहाँ पर अपराध सिर्फ मैकाले ने ही नही किया बल्कि हमारे देश के जनप्रतिनिधियो (नेताओं) ने भी किया है; जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ (जो कि असल में सत्ता का हस्तांतरण मात्र था) तब हमारे देश के सूत्रधारो को चाहिये था कि वो अंग्रेजो द्वारा थोपी गयी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर उसे उसका पुराना स्वरूप लौटाते, परंतु उन्होने ऐसा नही किया। करते भी कैसे, वो खुद भी तो उसी अंग्रेजी व्यवस्था का एक हिस्सा थे; वो भी तो उसी मानसिकता के शिकार थे जो सोचती थी कि इस देश में जो भी प्रगति हुई है वो अंग्रेजो की ही देन है। जिस तकनीक का प्रयोग वो कर रहे है वो भी अंग्रेजो की ही देन है, मगर वो ये भूल गये कि दिल्ली में खडा गरुड स्तम्भ (दिल्ली का महरोली का लौह स्तम्भ, जिस पर आज तक जंग नही लगा) हमारी सभ्यता के उत्कृष्ट ज्ञान का प्रत्यक्ष उदाहरण है। देश भर में स्थित विशाल और भव्य मन्दिर और महल-किले साक्षी है, सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य कला के। हिन्दू पंचांग चीख-चीख कर कह रहे है कि हमसे ज्यादा खगोल विज्ञान, ग्रह-नक्षत्रों को किसी ने भी नही पढ़ा है। हर ग्रह की चाल, गति और उसकी स्थिति को हम वर्षो पहले ही जान जाते है।
आप सभी से सिर्फ इतना सा निवेदन है कि अपने पुत्र-पुत्रियो, पौत्र-पौत्रियो, आस-पडोस के बच्चों तथा अपने मिलने वालो को भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में बताये जिससे उन्हे इस देश पे गर्व हो और वो इसके विकास में अपना सहयोग दे। आज के लिये बस इतना ही; इसी तरह के कुछ और सत्यों के साथ मैं आप सभी से फिर मिलुंगा। तब तक के लिये"वन्दे मातरम्" "जय हिन्द"॥
आज हमारे देश की युवा पीढी हमारे भारत के स्वर्णिम युग से अंजान है, इसका सबसे बडा कारण है "मैकाले" द्वारा प्रदत्त शिक्षा पद्धति। किसी भी देश को सदा के लिये गुलाम बनाना हो तो उनके मन में उनकी अपनी संस्कृति के लिये हीन भावना भर दो और अपनी (जो देश राज करना चाहता है उसकी) संस्कृति को इस तरह से प्रदर्शित करो जिससे यह सिध्द हो जाये कि सिर्फ और सिर्फ राज करने वाले देश में ही सारी प्रगति हुई है और उन्होने ही गुलाम देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है। गुलाम देश की अपनी कोई संस्कृति तो थी ही नहीं और जिसे वो संस्कृति मान रहे है वो तो सिर्फ जंगली आदिवासियो (जनजातियों) के रीति रिवाज मात्र है।
यहाँ पर अपराध सिर्फ मैकाले ने ही नही किया बल्कि हमारे देश के जनप्रतिनिधियो (नेताओं) ने भी किया है; जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ (जो कि असल में सत्ता का हस्तांतरण मात्र था) तब हमारे देश के सूत्रधारो को चाहिये था कि वो अंग्रेजो द्वारा थोपी गयी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर उसे उसका पुराना स्वरूप लौटाते, परंतु उन्होने ऐसा नही किया। करते भी कैसे, वो खुद भी तो उसी अंग्रेजी व्यवस्था का एक हिस्सा थे; वो भी तो उसी मानसिकता के शिकार थे जो सोचती थी कि इस देश में जो भी प्रगति हुई है वो अंग्रेजो की ही देन है। जिस तकनीक का प्रयोग वो कर रहे है वो भी अंग्रेजो की ही देन है, मगर वो ये भूल गये कि दिल्ली में खडा गरुड स्तम्भ (दिल्ली का महरोली का लौह स्तम्भ, जिस पर आज तक जंग नही लगा) हमारी सभ्यता के उत्कृष्ट ज्ञान का प्रत्यक्ष उदाहरण है। देश भर में स्थित विशाल और भव्य मन्दिर और महल-किले साक्षी है, सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य कला के। हिन्दू पंचांग चीख-चीख कर कह रहे है कि हमसे ज्यादा खगोल विज्ञान, ग्रह-नक्षत्रों को किसी ने भी नही पढ़ा है। हर ग्रह की चाल, गति और उसकी स्थिति को हम वर्षो पहले ही जान जाते है।
आप सभी से सिर्फ इतना सा निवेदन है कि अपने पुत्र-पुत्रियो, पौत्र-पौत्रियो, आस-पडोस के बच्चों तथा अपने मिलने वालो को भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में बताये जिससे उन्हे इस देश पे गर्व हो और वो इसके विकास में अपना सहयोग दे। आज के लिये बस इतना ही; इसी तरह के कुछ और सत्यों के साथ मैं आप सभी से फिर मिलुंगा। तब तक के लिये"वन्दे मातरम्" "जय हिन्द"॥