3 अप्रैल 2014

ज्ञान का एक दुर्लभ खजाना ऑनलाईन

पूर्व राष्ट्रपति ए.पी. जे. अब्दुल कलाम के अथक प्रयासों से प्रारम्भ की गई परियोजना Digital Library of India का मूर्त रूप आज भारतीय ऐतिहासिक पुस्तकों और पत्रिकाओं के एक ऐसे विशाल संग्रह का नाम बन चुका है, जिसमें आप एक बार जाने के पश्चात जाने कितने घंटे, दिन, माह और बरस बिताना पसंद करेंगे| यहाँ विभिन्न भाषाओं की दुर्लभ पुस्तकें और पत्रिकाएँ आपको मिल सकती हैं जो आप को किसी पुस्तकालय तक में धक्के खाने और भटकते खोजने पर भी संभवतः ना मिलें|

भाषा / वर्ष / विषय / अनुक्रम का चयन कर आप वहाँ डाऊनलोड के लिए उपलब्ध रीडर द्वारा इन पुस्तकों/ पत्रिकाओं को ऑनलाईन इनके मूल रूप में पढ़ सकते हैं|

लाखों पृष्ठों में समाहित यह एक ऐसा ऐतिहासिक संग्रह और कार्य है कि जाने आने वाली कितनी पीढियां इस से लाभान्वित और गौरवान्वित होंगी| पुनरपि अभी बहुत कार्य शेष है और निरंतर प्रगति पर है|

आप इस लिंक को अवश्य बुकमार्क कर लें व सहेज कर रख लें| नीचे इस परियोजना में सहायक और संलग्न संस्थाओं की सूची दी गई है -

Partners : India :Coordination and Research Centre in India

Indian Institute of Science, Bangalore

Academic Institutions

  • Anna University, Chennai, Tamil Nadu
  • Arulmigu Kalasligam College of Engineering (AKCE), Srivilliputur, Madurai, Tamil Nadu
  • Goa University, Goa
  • Indian Institute of Astrophysics, Bangalore,Karnataka
  • Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Uttar Pradesh
  • International Institute of Information Technology, Hyderabad, Andhra Pradesh
  • Osmania University, Hyderabad
  • Punjab Technical University, Punjab
  • Shanmugha Art, Science, Technology & Research Academy, Tanjavur, Tamil Nadu
  • University Of Hyderabad, Hyderabad
  • University of Pune, Pune, Maharashtra

Religious and Cultural Institutions

  • Kanchi University, Kanchi, Tamil Nadu
  • Poornapragna Vidyapeetha, Bangalore
  • Salarjung Museum, Hyderabad
  • Sringeri Mutt, Sringeri, Karnataka
  • Tirumala Tirupati Devasthanams, Tirupati, Andhra Pradesh
  • Tibetan Monasteries and Literature on Jainism

Government and Research Agencies

  • Academy of Sanskrit Research , Melkote, Karnataka
  • CDAC- Noida
  • Indian Institute of Astrophysics, Bangalore,Karnataka
  • Maharashtra Industrial Development Corporation (MIDC), Mumbai, Maharashtra
  • Rashtrapathi Bhavan, New Delhi

United States of America

  • Carnegie Mellon University

China

  • Beijing University
  • Chinese Academy of Science
  • Fudan University
  • Ministry of Education of China
  • Nanjing University
  • State Planning Commission of China
  • Tsinghua University
  • Zhejiang University

इसके अतिरिक्त मैसूर विश्व विद्यालय ने अपना पूरा पुस्तकालय डिजिटलाईज़ करवा लिया हुआ है। 

हिन्दी पुस्तकों की दृष्टि से वर्धा विश्वविद्यालय का हिन्दी समय तो नवीन स्रोत है ही, इसके अतिरिक्त 'होमी भाभा विज्ञान शिक्षा केन्द्र'  - http://ehindi.hbcse.tifr.res.in/ भी पठनीय है।

कुछ अन्य स्थल ये भी हैं  - 

नेशनल लायब्रेरी नाम की इस राजकीय परियोजना को भी देखा जा सकता है  - http://www.nationallibrary.gov.in/

इस लिंक को देखना भी प्रासंगिक होगा - http://deity.gov.in/content/national-digital-library

NCERT की हिन्दी पुस्तकें भी ऑनलाईन उपलब्ध हैं - http://www.upscguide.com/content/ncert-hindi-medium-books-download

कई लोगों ने निजी तौर पर भी बहुत बढ़िया प्रयास किए हैं जिनमें यह प्रमुख है - http://www.apnihindi.com/

और तो और, मोबाईल के लिए ऑनलाईन हिन्दी पुस्तकालय भी उपलब्ध है, जिसका उपयोग मैं यात्रा आदि में नियमित पढ़ने के लिए करती हूँ।

यह एप्लीकेशन यहाँ उपलब्ध है - https://play.google.com/store/apps/details?id=in.co.akshar.hindibooks&hl=hi

स्वस्तिक (swastik)

स्वस्तिक (swastik)

बुल्गारिया मे 7000 वर्ष प्राचीन स्वास्तिक चिन्ह मिले हैं| हैं ना आश्चर्यजनक!

10168184_450254588444593_355242639_n  स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्व अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स...्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला।

  स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं।

  स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वस्तिक’ (卐) कहते हैं। दूसरी आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वस्तिक’ अंकित था।

  लेकिन यही स्वास्तिक, यदि हम कहें कि बुल्गारिया में 7000 वर्ष पहले इस्तेमाल होता था, तो आपको आश्चर्य होगा| लेकिन यह सत्य है|
उत्तर-पश्चिमी बुल्गारिया के Vratsa नगर के संग्रहालय मे चल रही एक प्रदर्शनी मे 7000 वर्ष प्राचीन कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी हई हैं जिसपर स्वास्तिक (卍) का चिन्ह बना है| Vratsa शहर के ही निकट Altimir नामक गाँव के एक धार्मिक यज्ञ कुण्ड के खुदाई के समय ये कलाकृतियाँ मिली थी |

स्वास्तिक का महत्व............

स्वास्तिक को चित्र के रूप में भी बनाया जाता है और लिखा भी जाता है जैसे "स्वास्ति न इन्द्र:" आदि.

स्वास्तिक भारतीयों में चाहे वे वैदिक हो या सनातनी हो या जैनी ,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ... शूद्र सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि संस्कार घर के अन्दर कोई भी मांगलिक कार्य होने पर "ऊँ" और स्वातिक का दोनो का अथवा एक एक का प्रयोग किया जाता है। हिन्दू समाज में किसी भी शुभ संस्कार में स्वास्तिक का अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है,बच्चे का पहली बार जब मुंडन संस्कार किया जाता है तो स्वास्तिक को बुआ के द्वारा बच्चे के सिर पर हल्दी रोली मक्खन को मिलाकर बनाया जाता है,स्वास्तिक को सिर के ऊपर बनाने का अर्थ माना जाता है कि धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों का योगात्मक रूप सिर पर

हमेशा प्रभावी रहे,स्वास्तिक के अन्दर चारों भागों के अन्दर बिन्दु लगाने का मतलब होता है कि व्यक्ति का दिमाग केन्द्रित रहे,चारों तरफ़ भटके नही,वृहद रूप में स्वास्तिक की भुजा का फ़ैलाव सम्बन्धित दिशा से सम्पूर्ण इनर्जी को एकत्रित करने के बाद बिन्दु की तरफ़ इकट्ठा करने से भी माना जाता है,स्वास्तिक

का केन्द्र जहाँ चारों भुजायें एक साथ काटती है,उसे सिर के बिलकुल बीच में चुना जाता है,बीच का स्थान बच्चे के सिर में परखने के लिये जहाँ हड्डी विहीन हिस्सा होता है और एक तरह से ब्रह्मरंध के रूप में उम्र की प्राथमिक अवस्था में उपस्थित होता है और वयस्क होने पर वह हड्डी से ढक जाता है,के स्थान पर बनाया जाता है। स्वास्तिक संस्कृत भाषा का अव्यय पद है,पाणिनीय व्याकरण के अनुसार इसे वैयाकरण कौमुदी में ५४ वें क्रम पर अव्यय पदों में गिनाया गया है। यह स्वास्तिक पद ’सु’ उपसर्ग तथा ’अस्ति’ अव्यय (क्रम ६१) के संयोग से बना

है,इसलिये ’सु+अस्ति=स्वास्ति’ इसमें ’इकोयणचि’सूत्र से उकार के स्थान में वकार हुआ है। ’स्वास्ति’ में भी ’अस्ति’ को अव्यय माना गया है और ’स्वास्ति’ अव्यय पद का अर्थ ’कल्याण’ ’मंगल’ ’शुभ’ आदि के रूप में प्रयोग किया जाता है। जब स्वास्ति में ’क’ प्रत्यय का समावेश हो जाता है तो वह कारक का रूप धारण कर लेता है और उसे ’स्वास्तिक’ का नाम दे दिया जाता है। स्वास्तिक का निशान भारत के अलावा विश्व में अन्य देशों में भी प्रयोग में लाया जाता है,जर्मन देश में इसे राजकीय चिन्ह से शोभायमान किया गया है,अन्ग्रेजी के क्रास में भी स्वास्तिक का बदला हुआ रूप मिलता है,हिटलर का यह फ़ौज का निशान था,कहा जाता है कि वह इसे अपनी वर्दी पर दोनो तरफ़ बैज के रूप में प्रयोग करता था,लेकिन उसके अंत के समय भूल से बर्दी के बेज में उसे टेलर ने उल्टा लगा दिया था,जितना शुभ अर्थ सीधे स्वास्तिक का लगाया जाता है,उससे भी अधिक उल्टे स्वास्तिक का अनर्थ भी माना जाता है।
स्वास्तिक की भुजाओं का प्रयोग अन्दर की तरफ़ गोलाई में लाने पर वह सौम्य माना जाता है,बाहर की तरफ़ नुकीले हथियार के रूप में करने पर वह रक्षक के रूप में माना जाता है।

काला स्वास्तिक शमशानी शक्तियों को बस में करने के लिये किया जाता है,लाल स्वास्तिक का प्रयोग शरीर
की सुरक्षा के साथ भौतिक सुरक्षा के प्रति भी माना जाता है,डाक्टरों ने भी स्वास्तिक का प्रयोग आदि काल से किया है,लेकिन वहां सौम्यता और दिशा निर्देश नही होता है। केवल धन (+) का निशान ही मिलता है। पीले रंग का स्वास्तिक धर्म के मामलों में और संस्कार के मामलों में किया जाता है,विभिन्न रंगों का प्रयोग विभिन्न कारणों के लिये किया जाता

स्वास्तिक के चारो और सर्वाधिक पॉजीटिव ऊर्जा पाई गई है दूसरे नं. पर शिवलिँग है इसे वोविस नाम के वैज्ञानिक ने अपनी तकनीक से नापा इसलिये इसे वोविस इनर्जी कहते है । अधिक पाजिटिव इनर्जी की बजह से स्वास्तिक किसी भी तरह का वास्तुदोष तुरंत समाप्त कर देता है।

भोजन सम्बन्धी नियम

  1. पांच अंगो ( दो हाथ, दो पैर, मुख ) को अच्छी तरह से धो कर ही भोजन करे !
  2. गीले पैरों खाने से आयु में वृद्धि होती है !
  3. प्रातः और सायं ही भोजन का विधान है ! क्योंकि पाचन क्रिया की जठराग्नि सूर्योदय से 2 घंटे बाद तक एवं सूर्यास्त से 2:30 घंटे पहले तक प्रबल रहती है|
  4. पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही खाना चाहिए !
  5. दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है !
  6. पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है !
  7. शैय्या पर , हाथ पर रख कर , टूटे फूटे बर्तनो में भोजन नहीं करना चाहिए !
  8. मल मूत्र का वेग होने पर, कलह के माहौल में, अधिक शोर में, पीपल, वट वृक्ष के नीचे,भोजन नहीं करना चाहिए !
  9. परोसे हुए भोजन की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए !
  10. खाने से पूर्व अन्न देवता , अन्नपूर्णा माता की स्तुति कर के , उनका धन्यवाद देते हुए , तथा सभी भूखो को भोजन प्राप्त हो ईश्वर से ऐसी प्राथना करके भोजन करना चाहिए !
  11. भोजन बनने वाला स्नान करके ही शुद्ध मन से, मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाये और सबसे पहले ३ रोटिया अलग निकाल कर ( गाय , कुत्ता , और कौवे हेतु ) फिर अग्नि देव का भोग लगा कर ही घर वालो को खिलाये !
  12. इर्षा , भय , क्रोध, लोभ,रोग , दीन भाव,द्वेष भाव,के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है !
  13. आधा खाया हुआ फल ,मिठाईया आदि पुनः नहीं खानी चाहिए !
  14. खाना छोड़ कर उठ जाने पर दुबारा भोजन नहीं करनाचाहिए !
  15. भोजन के समय मौन रहे !
  16. भोजन को बहुत चबा चबा कर खाए !
  17. रात्री में भरपेट न खाए !
  18. गृहस्थ को ३२ ग्रास सेज्यादा न खाना चाहिए !
  19. सबसे पहले मीठा , फिर नमकीन , अंत में कडुवा खाना चाहिए !
  20. सबसे पहले रस दार , बीचमें गरिस्थ , अंत में द्राव्य पदार्थ ग्रहण करे!
  21. थोडा खाने वाले को --आरोग्य , आयु , बल , सुख, सुन्दर संतान ,और सौंदर्य प्राप्त होता है !
  22. जिसने ढिढोरा पीट कर खिलाया हो वहा कभी न खाए !
  23. कुत्ते का छुवा , रजस्वला स्त्री का परोसा, श्राद्ध का निकाला , बासी , मुंह से फूक मरकर ठंडा किया , बाल गिरा हुवा भोजन , अनादर युक्त , अवहेलना पूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करे !
  24. कंजूस का, राजा का,वेश्या के हाथ का,शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए|


यह नियम आप जरुर अपनाये और फर्क देखें ||