23 दिस॰ 2012

सरकार और पुलिस की दमनकारी नीतियां


"देवो दुर्बल: घातक:||" अर्थात् "देवता भी कमजोर को ही मारते है|"

यह आज सिद्ध हो गया है कि भारतीय पुलिस की स्थापना "गोरे अंग्रेजो" ने जिस काम के लिये की थी, उस काम का निर्वाह वो "काले अंग्रेजो" के लिये बखुबी कर रही है|
दोस्तो पुलिस की स्थापना की गयी थी भारतीयो के दमन के लिये, और यह पुनीत कार्य किया था गोरे अंग्रेजो ने सन् 1860-61 में|
पुलिस को उस समय एक विशेष अधिकार दिया गया था "Right to Offense" मतलब पुलिस जब चाहे जिसे चाहे मार सकती है, लाठी से, जूतो से, थप्पड से, और किसी भी हथियार से और वो भी बिना कारण, जबकि भारत के नागरिको को नहीं दिया गया "Right to Defense" मतलब कि अगर आपको कोई पुलिस वाला बिना किसी जायज वजह के मार रहा है तो आप अपना बचाव करने के लिये कुछ नहीं कर सकते, आपको मार खानी पडेगी|

और अगर यदि आपने गलती से भी किसी पुलिस वाले का हाथ पकड लिया या उसे पलट के मारा या अपने बचाव के लिये कुछ किया तो आप पर court case चलेगा कि आपने एक पुलिस वाले को उसका काम (duty) करने से रोका तथा आपको इसके लिये सजा भी मिलेगी|

आजादी के बाद इस देश के नेताओं (काले अंग्रेजो) ने पुलिस के लिये ये प्रचारित करवा दिया कि पुलिस तो आम जनता की सुरक्षा और सेवा के लिये है जो सरासर झूठ है| आज भी पुलिस वही काम कर रही है जो वो अंग्रेजो के लिये करती थी तथा आज भी उसके पास Right to offense है जबकि हमारे पास Right to defense नही है|

कल और आज शान्तिपूर्वक आंदोलन कर रहे छात्रो- छात्राओ, और नागरिको पर पुलिस ने वेवजह लाठियां चलाई, भरी सर्दी में पानी की बौछारे करी, आंसू गैस के गोले छोडे, और ऊपर से जुमला यह कि हमें शान्तिपूर्वक आंदोलन से कोई दिक्कत नहीं है, आप लोग हिंसा ना करें| ये तो वही बात हो गयी कि "उल्टा चोर कोतवाल को डांटे" बस फर्क सिर्फ इतना है कि यहां चोर खुद पुलिस है|

 दिल्ली में छात्राओ और औरतो पर "लाठी चलाओ" कार्यवाही में एक भी महिला पुलिस नही, पुरुष पुलिस ही महिलाओ को मार रही है| अरे भाई ये तो कानून के खिलाफ है | महिलाओ पर सिर्फ महिला पुलिस ही कार्यवाही कर सकती है|

और अभी-अभी प्राप्त खबर के अनुसार दिल्ली सरकार ने गृह मंत्रालय को चिठ्ठी लिखकर कहा है कि पुलिस की कार्यवाही के बारे में उन्हे कोई जानकारी नहीं है|
हा.. हा.. हा..
कितना बडा मजाक है? पुलिस की इतनी हिम्मत कि अपने आका के हुक्म के बगैर कोई कार्यवाही करे|

सुषमा स्वराज जी ने tweet किया कि
"Please do not resort to violence. That is not the solution. It is our country. This is our problem. We will definitely find a solution. "

अरे मेडम जी यह तो बताओ कि आप किसकी तरफ हो??
मार पुलिस रही है दो दिनो से और अगर गुस्से में एक- आध लोगो ने अगर पत्थर फेक भी दिये पुलिस पर तो आप tweet करने आ गयी| कल कहां थी आप जब पुलिस ने दिनभर में 7 बार लाठियां चलाई|

और अभी तक एक भी केन्द्रीय स्तर का नेता क्यों नही आया आंदोलनकारियों से बात करने|क्यों नहीं अभी तक पुलिस को आदेश दिये गये कि आंदोलनकारियों पर कोई कार्यवाही नहीं करें|


"ये public है सब जानती है . .. " कि सब मिले हुए है, एक ही थैली के चट्टे-बट्टे है सब|

                                                                                           _____________  "एक भारतीय"

दिल्ली में हुआ बदलाव की क्रान्ति का आगाज (भाग -२)

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता||" 

ऐसा हमारे शास्त्रों में कहा गया है, और साथ में यह भी कहा गया है कि जहां नारियों का सम्मान नहीं होता और जिस समाज में, देश में वो सुरक्षित नहीं है, उसका पतन निश्चित है|और मुझे लग रहा है कि हम पतन की ओर अग्रसर है||
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 जिस देश की सभ्यता और संस्कृति पर हम आज तक गर्व करते आये है, और सीना ठोककर यह कहते आये कि  
"हम भारत के भरत खेलते शेरों की संतान से, 
कोई देश नहीं दुनियां में बढकर हिन्दुस्तान से"| 

आज उसी देश की नाक काट दी (इज्जत लूट ली) इन कमीनो ने, जब लोग इंसाफ की मांग लेकर पंहुचे राजधानी||

 ना तो 'महामहिम' राष्ट्रपति, ना ही इस देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति (हमारे संविधान के अनुसार) हमारे 'प्यारे' प्रधानमंत्री महोदय ने दर्शन दिये, ना ही कोई बयान आया| बस छुप के बैठ गये अपने-अपने घरोंदो में, क्योंकि पता है उन्हें कि वो तो सिर्फ कठपुतली है, किसी और के हाथों की||

और कठपुतली चलानेवाली रात को आकर कहती है कि हम कुछ करेंगे, और सोचेंगे| कल सुबह आकर मुझसे मिलो||

हा..... .हा....... हा.... क्या मजाक है|

जबकि अभी कुछ समय पहले जब ये खुद हरियाणा गयी थी तब इनका ही ये बयान था कि 'बलात्कार' तो सारे देश में होते है, उसमें हम कुछ नहीं कर सकते| और इस पर जब बाबा रामदेव ने कहा कि अगर यह तुम्हारे साथ हो जाये तो खांग्रेस समर्थको ने काफी हंगामा किया था|| और आज बात करती है कि हम कुछ करेंगे, कडा कानून बनायेंगे, बहुत बडा मजाक है ये मेरे दोस्तो...........

 एक तरफ सपा की श्रीमति जया बच्चन रोती है, उस लडकी से हमदर्दी दिखाती है| और दूसरी तरफ उनकी पार्टी के "श्री" राजा भैया कहते कि "आज के युवाओं को TV पे आने का शौक है, इसलिये ये सब कर रहे है" और तो और यह भी कहते है कि "ऐसी घटनायें तो देश में रोज होती है, तब तो कोई आंदोलन नहीं करता| किसी गरीब की लडकी के साथ ऐसा होता है तो कोई हंगामा नहीं करता|"

अब मुझे एक बात बताओ कि देर से ही सही अगर लोग जाग गये है, तो तेरी .. . का क्या जाता है??

अगर हम अब एक नया कठोर कानून चाहते है, तो तेरी इतनी क्यों जल रही है??

 मैं बताऊं "क्यों जल रही है", क्योंकि अगर ऐसा कोई कानून बना तो सबसे पहले ये ही फंसेगा|


तो सारांश यह है कि अब हमें एक नये नेतृत्व की जरूरत है, जो वक्त आने पर मुंह छिपाये नहीं, बल्कि जनता के साथ खडा हो|

जय भारत, जय हिन्द||

                                                                                   _____________ "एक भारतीय"

22 दिस॰ 2012

दिल्ली में हुआ बदलाव की क्रान्ति का आगाज

आज भारत के इतिहास में एक और पन्ना जुड गया है कि जिन ... को हम अपना प्रतिनिधी चुनकर अपने देश की बागडोर सोंपते है, वो जरूरत पडने पर हमारी ही बात नहीं सुनते है|

इस देश में जब भी कोई आंदोलन होता है, तो वो अहिंसापूर्वक ही शुरु होता है, लेकिन हमारे देश के महान ( कमीने ) जनप्रतिनिधी उसे एक हिंसापूर्ण आंदोलन में बदल देते है, अपनी इन ओछी हरकतो से |
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 और फिर मीडिया के सामने आ जाते है भौंकने के लिये कि हमारी प्रदर्शनकारियो से अपील है कि शंतिपूर्वक आंदोलन करें|
और कभी-कभी तो हद ही कर देते है यह कहकर कि हिंसा से कुछ प्राप्त नहीं होता, यह देश और हम गांधी जी के सिद्धांतो को मानने वाले है और हमें उनका अनुसरण करना चाहिए|
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 लेकिन आज जो कुछ भी हो रहा है, दिल्ली में उसने यह साबित कर दिया है कि लातो के भूत कभी बातो से नहीं मानते| जो उस देश की बेटी के साथ हुआ, अगर वो इन कमीनो की लडकी के साथ हौ जाता तो तुरंत कठोर कानून पारित करवा लेते, अध्यादेश जारी करके|
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FDI पर अध्यादेश जारी करके bill पास करवा सकते है तो लज्जाभंग के लिये कानून पारित करने के लिये अगले सत्र का इंतजार क्यों??????
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आज दिल्ली में एकत्र हुए लोग जिनमें ज्यादातर विद्यार्थी है, किसी राजनैतिक पार्टी से नहीं है, उन सभी को पैसा देकर या किसी व्यक्ति ने आव्हान कर नहीं बुलाया है, बल्कि वो सभी एकत्र हुए है, SMS, PHONE, और social networking के जरिए||
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और यही है भारत की वो असली जनता जिसे ये सफेद खादी धारण करने वाले और काले मन (दिल, दिमाग) वाले नेता भारत का भविष्य कहते है, और आज जब ये भविष्य अपने खुद के भविष्य के लिये उनसे जबाब मांगने और कठोर कानून की बात करने दिल्ली पहुंचा तो हवा टाइट हो गयी सभी. . . की||
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एक भी नेता नजर नही आया, कि चलो बात तो सुन ले कि क्या कहना चाहता है इस "भारत" का भविष्य?? आता भी कैसे, एक भी राजनैतिक दल ऐसा नहीं है जिसमें अपराधी ना हो, अपराध भी कैसे-कैसे (लज्जाभंग, कत्ल, गबन, घोटाला, बलपूर्वक दूसरों के जमीन-धन पर कब्जा)|
अब जब खुद की पार्टी में ही कालिख पुते लोग है तो जनता के सामने किस मुंह से आये??
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अब इस देश को जरूरत है, एक आमूलचूल परिवर्तन की| एक नये संविधान की, एक नये नायक की, एक नयी क्रान्ति की ||||

इतिहास गवाह है कि जब-जब भी किसी देश में एक बडा परिवर्तन आया है, उसके पीछे युवाओं का ही बडा योगदान रहा है|
बस अब और ज्यादा नहीं लिखुंगा, आज के लिये इतना ही ||

                                                                                             ___________ "एक भारतीय"

वर्तमान भारत और हम

वर्तमान भारत में चल रही गतिविधियों को देखते हुए अभी हम कुछ समय के लिये वर्तमान पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे| परिस्थितियों को देखते हुए अभी यही सही है और हमारा कर्तव्य भी||

4 अग॰ 2012

महान प्राचीन भारत के बारे में

ये चिठ्ठा मेरी एक कोशिश है, हमारे महान प्राचीन भारत के बारे में लोगों को बताने की। मैं काफी समय से प्राचीन भारत के बारे में जानकारी एकत्रित कर रहा हूं। हमारा ज्ञान विज्ञान, इतिहास, उद्योग, वर्ण व्यवस्था, समाज, प्रगति इत्यादि के बारे में मैने पढा और ये जानकर मैं आश्चर्यचकित रह गया कि हम भारतीय हर काम में सबसे आगे थे। हमारे पूर्वजों ने जितनी तरक्की उस समय में कर ली थी उतनी तो हम आजतक नहीं कर पाये।
आज हमारे देश की युवा पीढी हमारे भारत के स्वर्णिम युग से अंजान है, इसका सबसे बडा कारण है "मैकाले" द्वारा प्रदत्त शिक्षा पद्धति। किसी भी देश को सदा के लिये गुलाम बनाना हो तो उनके मन में उनकी अपनी संस्कृति के लिये हीन भावना भर दो और अपनी (जो देश राज करना चाहता है उसकी) संस्कृति को इस तरह से प्रदर्शित करो जिससे यह सिध्द हो जाये कि सिर्फ और सिर्फ राज करने वाले देश में ही सारी प्रगति हुई है और उन्होने ही गुलाम देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर किया है। गुलाम देश की अपनी कोई संस्कृति तो थी ही नहीं और जिसे वो संस्कृति मान रहे है वो तो सिर्फ जंगली आदिवासियो (जनजातियों) के रीति रिवाज मात्र है।

यहाँ पर अपराध सिर्फ मैकाले ने ही नही किया बल्कि हमारे देश के जनप्रतिनिधियो (नेताओं) ने भी किया है; जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ (जो कि असल में सत्ता का हस्तांतरण मात्र था) तब हमारे देश के सूत्रधारो को चाहिये था कि वो अंग्रेजो द्वारा थोपी गयी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन कर उसे उसका पुराना स्वरूप लौटाते, परंतु उन्होने ऐसा नही किया। करते भी कैसे, वो खुद भी तो उसी अंग्रेजी व्यवस्था का एक हिस्सा थे; वो भी तो उसी मानसिकता के शिकार थे जो सोचती थी कि इस देश में जो भी प्रगति हुई है वो अंग्रेजो की ही देन है। जिस तकनीक का प्रयोग वो कर रहे है वो भी अंग्रेजो की ही देन है, मगर वो ये भूल गये कि दिल्ली में खडा गरुड स्तम्भ (दिल्ली का महरोली का लौह स्तम्भ, जिस पर आज तक जंग नही लगा) हमारी सभ्यता के उत्कृष्ट ज्ञान का प्रत्यक्ष उदाहरण है। देश भर में स्थित विशाल और भव्य मन्दिर और महल-किले साक्षी है, सर्वश्रेष्ठ स्थापत्य कला के। हिन्दू पंचांग चीख-चीख कर कह रहे है कि हमसे ज्यादा खगोल विज्ञान, ग्रह-नक्षत्रों को किसी ने भी नही पढ़ा है। हर ग्रह की चाल, गति और उसकी स्थिति को हम वर्षो पहले ही जान जाते है।

आप सभी से सिर्फ इतना सा निवेदन है कि अपने पुत्र-पुत्रियो, पौत्र-पौत्रियो, आस-पडोस के बच्चों तथा अपने मिलने वालो को भारत के गौरवशाली अतीत के बारे में बताये जिससे उन्हे इस देश पे गर्व हो और वो इसके विकास में अपना सहयोग दे। आज के लिये बस इतना ही; इसी तरह के कुछ और सत्यों के साथ मैं आप सभी से फिर मिलुंगा। तब तक के लिये"वन्दे मातरम्" "जय हिन्द"